11 अगस्त 1987 को जब उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख़्यमंत्री , वीर बहादुर सिंह के हेलिकॉप्टर ने सिसौली में लैंड किया , तो उनका स्वागत करने के लिए वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था और उन्हें सम्मेलन स्थल तक जाने के लिए क़रीब आधा किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. मंच पर जब उन्होंने पानी पीने की इच्छा प्रकट की तो , बाबा टिकैत नें उनके दोनों हाथ जुड़वा कर चुल्लू में करवे से पानी पिलाया. 6 फ़ीट से भी लम्बा कद हमेशा कुरता और धोती सर पर गाँधी टोपी ,खड़ी बोली ,अड़ियल और बेबाक़ कुछ ऐसे ही अंदाज़ से महेंद्र सिंह टिकैत ने देश के किसान और मज़दूरों के दिल में जगह बनाई और बन गए किसान मसीहा।
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म मुज़फ्फरनगर के क़स्बा सिसोली में 6 अक्टूबर 1935 में एक किसान परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम चौहल सिंह टिकैत और माता का नाम मुख़्तियारी देवी था। टिकैत ने गांव के ही जूनियर हाई स्कूल से कक्षा सात तक की पढाई पूरी की। महेंद्र सिंह टिकैत मात्र 8 साल के थे जब इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनके पिता चौधरी चौहल सिंह टिकैत ,बालियान खाप के चौधरी थे। इनके गुज़रते ही बालियान खाप की ज़िमेदारी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के कंधो पर आ गई। इन्होने इस ज़िमेदारी को बड़े अच्छे से निभाया। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने बालियान खाप के चौधरी रहते हुए अपने समाज के लिए बहुत अच्छे कार्य किये जैसे दहेजप्रथा मर्त्यु भोज , नशाखोरी भूर्ण हत्या जैसी कई सामाजिक बुराइयों पर रोक लगाई ।
कैसे बने भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष
साल 1986 में उत्तरप्रदेश के किसान सिचाई ,बिजली ,फसलों के मूल्यों को लेकर सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। तब किसानो को एक संगठन की आवशकता महसूस हुई। इसी साल सिसोली में एक स्वरखाप महापंचायत बुलाई गयी। जिसमे किसानो ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया हर जाती बिरादरी से किसान मज़दूर सिसोली में इकठा हुए। इसी पंचायत में महेंद्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष चुना गया। चूँकि टिकैत सबसे बड़ी खाप बालियान खाप के चौधरी होने के साथ साथ ,एक मेहनती और सीधे सच्चे इंसान थे। बस यही से शुरू होती है टिकैत के असली संघर्ष की कहानी। यूनियन के अध्यक्ष बनते ही बाबा टिकैत ने अपना पूरा जीवन किसानो के लिए समर्पित कर दिया और किसान मज़दूरों की आवाज़ को उठाना शुरु कर दिया। जिसमे टिकैत के परिवार खासकर धर्मपत्नी ने इनका बहुत साथ दिया हर फैसले में टिकैत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं।
भारतीय किसान यूनियन ने किसानो के लिए सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन के रूप में बहुत सी लड़ाईया लड़ी लेकिन भाकियू को एक अलग पहचान और मजबूती मिली.
खेड़ी करमू बिजलीघर आंदोलन
1987 में हुए शामली के खेड़ी करमू बिजलीघर आंदोलन जो बिजली की बढ़ाई हुई दरों के लिए चल रहा था। इस आंदोलन में पुलिस और किसानों के बीच टकराव हो गया था। जिसमे एक पीएसी का जवान और दो किसान शहीद भी हो गए थे। जिनमे एक का नाम अकबर और एक का जयपाल था इसी घटना के बाद से भाकियू हिन्दु मुस्लिम एकता की प्रतीक बन गई और एक नया नारा भारतीय किसान यूनियन में जुड़ गया 'हर हर महादेव ' 'अल्लाह हु अकबर ' जो बीते दिनों भी काफ़ी चर्चा में रहा। इसके बाद उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर को सिसौली आना पड़ा और किसानों की मांगो को मानना पड़ा तभी जाकर किसानो का गुस्सा शांत हुआ।
इसके बाद बाबा टिकैत ने रुकने का नाम नहीं लिया और एक से बड़े एक आंदोलन किसानो के लिए किये। जिनमें कई बार महेंद्र सिंह टिकैत को जेल भी जाना पड़ा।खेड़ी करमू बिजलीघर आंदोलन के बाद बाबा टिकैत कीअगुवाई में भाकियू द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलन।
इसके बाद बाबा टिकैत ने रुकने का नाम नहीं लिया और एक से बड़े एक आंदोलन किसानो के लिए किये। जिनमें कई बार महेंद्र सिंह टिकैत को जेल भी जाना पड़ा।खेड़ी करमू बिजलीघर आंदोलन के बाद बाबा टिकैत कीअगुवाई में भाकियू द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलन।
मेरठ कमिश्नरी का घेराव -
27 जनवरी से 19 फरवरी तक 24 दिन तक मेरठ में कमिश्नरी का घेराव वा धरना प्रदर्शन चला जिसमे ठंड के कारण कई किसानो कि जान भी गई।
बोट क्लब पर धरना टकराव -
25 अक्टूबर 1988 को बाबा टिकैत ने , गन्ने का अधिक मूल्य , पानी और बिजली की दरें कम की जाएं ,किसानों के कर्ज़े माफ़ किए जाएं जैसी मांगो को लेकर दिल्ली बोट क्लब का घेराव किया जिसमें 14 राज्यों से लगभग 5 लाख लाख किसान जुटे थे।
रजबपुर गोलीकांड आंदोलन -
6 मार्च 1988 को रजबपुर में पुलिस की गोली से पाँच किसानो के मरे जाने के बाद शुरू किया था जेल भरो आंदोलन चौधरी टिकैत के नेतृत्व में 110 दिन तक चले इस आंदोलन को भारतीय किसान यूनियन का बड़ा आंदोलन कहा जाता है।
नईमा कांड आंदोलन -
मुज़फ़्फ़रनगर के सीकरी गांव निवासी युवती नईमा के गायब होने पर दो अगस्त 1989 को चौधरी मेहन्द्र सिंह टिकैत ने भोपा में गंगनहर के किनारे धरना आंदोलन की शुरुआत की जो 30 से 40 दिन तक चला। इस आंदोलन में किसानो और पुलिस के बीच टकराव भी हुआ जिसमे किसानो के कई ट्रेक्टर गंगनहर में भी गिर गए। इस आंदोलन में टिकैत के आह्वान पर पुरे देश से किसान नेता इस आंदोलन में शामिल हुए थे। 42 दिन बाद तत्कालीन कृषि मंत्री चौधरी नरेंद्र सिंह ने गंगनहर में डाले गए ट्रैक्टरो के बदले नए ट्रेक्टर देने , बकाया बिजली बिल माफ़ करने समेत कई मांगो को पूरा करने की घोषणा की। इसके बाद ही इस धरने को समाप्त किया गया। इस आंदोलन को टिकैत की बड़ी जीत कहा जाता है।
ऐसे आंदोलनों के बाद ही चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानो के राष्ट्रीय नेता बन गए। और एक के बाद एक बड़े आंदोलन टिकैत के नेतृत्व में चलते रहे। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने अपना पूरा जीवन किसान मज़दूरों की लड़ाई के लिए न्योछावर कर दिया। ये कारवां सालों तक यू ही चला।
15 मई 2011 किसानों के लिए एक काला दिन बन के सामने आया ,किसानों के मसीहा और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत की रविवार को प्रात: सांसें थम गई. सिसौली ने और पूरे देश के किसानों ने अपना मसीहा खो दिया पुरे देश के किसानो के लिए बहुत दुःख की घडी थीं जिसकी भरपाई कर पाना कोई आसान बात नहीं थी।
ऐसे आंदोलनों के बाद ही चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानो के राष्ट्रीय नेता बन गए। और एक के बाद एक बड़े आंदोलन टिकैत के नेतृत्व में चलते रहे। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने अपना पूरा जीवन किसान मज़दूरों की लड़ाई के लिए न्योछावर कर दिया। ये कारवां सालों तक यू ही चला।
15 मई 2011 किसानों के लिए एक काला दिन बन के सामने आया ,किसानों के मसीहा और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत की रविवार को प्रात: सांसें थम गई. सिसौली ने और पूरे देश के किसानों ने अपना मसीहा खो दिया पुरे देश के किसानो के लिए बहुत दुःख की घडी थीं जिसकी भरपाई कर पाना कोई आसान बात नहीं थी।
किसान ज्योति भी दुःख सहन न कर सकी ,
इसे संयोग कहें या यूं कहें कि किसान पुत्र की अंतिम विदाई को किसान ज्योति भी बर्दाश्त ना कर सकी। सिसौली में बने किसान भवन जिसका निर्माण बाबा टिकैत ने दूर दराज़ से आने वाले किसानो के ठहरने के लिए कराया था। इसी किसान भवन में हर महीने की 17 तारीख को यूनियन की एक मासिक पंचायत भी होती है। इसी किसान भवन में एक 'किसानज्योति' जो करीब पांच दशकों से जल रही थी। एक छोटे से कमरे में स्थित इस पीतल के बड़े से कटोरे में जली ज्योति को हवा और बारिश से बचाने के लिए चारों ओर शीशे लगे हुए हैं। यह किसान ज्योति बाबा के घर से किसान भवन परिसर में वर्ष 1988 में स्थापित कर दी गयी थी। इससे पहले यह किसान ज्योति बाबा टिकैत के घर पर ही जलती थी। बाबा टिकैत ही इसे जलाते थे।
अब बाबा की तरह यह किसान ज्योति भी शांत हो गई। मगर बाद में वहीं किसान ज्योति सिसौली स्थिति किसान भवन में किसानों के शक्ति का केन्द्रीय स्थल बनी। जिसे उनके पुत्रों और किसानो ने फिर से जलाना शुरू किया और आज तक किसान ज्योति बराबर जल रही है । किसानों के मन में बाबा टिकैत की तरह ही किसान ज्योति के लिए श्रद्धा और आदर का भाव रहता है।
चौधरी नरेश टिकैत के सर बँधी पगड़ी ,
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु के बाद यूनियन और बालियान खाप की जिम्मेदारी उनके बड़े लड़के चौधरी नरेश टिकैत के कंधो पर आ गयी और चौधरी राकेश टिकैत को राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में यूनियन में पद मिला। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के स्वर्गवास के बाद भारतीय किसान यूनियन का अस्तित्व कहीं छूप सा गया यूनियन तो रही मगर वो धाक वो रोब न रहा जो उनके समय में था। चौधरी नरेश टिकैत नरम स्व्भाव के व्यक्ति है उनके अध्यक्ष होते हुए भी यूनियन के बड़े निर्णय राकेश टिकैत ही लेते है।
उसके बाद साल 2018 में टिकैत बन्दुओं ने एक किसान क्रांति यात्रा का एलान कर दिया जिसको किसानों की अनेक मांगो को लेकर हरिद्वार से दिल्ली जाना था। इस यात्रा में देश भर से लाखों किसानों ने भाग लिया। और सोइ हुई यूनियन का अस्तित्व फिर से जाग गया। इस यात्रा में देश भर से इतना किसान जुटा जो सरकार की सोच से परे था। इस यात्रा के बाद भारतीय किसान यूनियन और टिकैत परिवार पे फिर से हवा आ गयी। हालांकि किसान क्रांति यात्रा को सरकार ने दिल्ली बॉर्डर पर ही रोक दिया जिसमे किसानो और पुलिस के बिच काफी झड़प हुई। पुलिस ने किसानो पर पानी की बौछार और लाठी चार्ज भी किया जिसमे कई किसान घायल भी हुए। चौधरी नरेश टिकैत किसानों को लेकर उत्तरप्रदेश और दिल्ली बॉर्डर पर ही बैठ गए। जिसके बाद दिल्ली का गाज़ीपुर बॉर्डर किसान क्रांति गेट बन गया। बाद में भारत सरकार के एक प्रतिनिधी मंडल और किसानों की बीच में वार्ता हुई जिसमे किसानो की आधी माँगो को मान लिया। जिसके बाद धरना समाप्त हुआ।
उसके बाद साल 2018 में टिकैत बन्दुओं ने एक किसान क्रांति यात्रा का एलान कर दिया जिसको किसानों की अनेक मांगो को लेकर हरिद्वार से दिल्ली जाना था। इस यात्रा में देश भर से लाखों किसानों ने भाग लिया। और सोइ हुई यूनियन का अस्तित्व फिर से जाग गया। इस यात्रा में देश भर से इतना किसान जुटा जो सरकार की सोच से परे था। इस यात्रा के बाद भारतीय किसान यूनियन और टिकैत परिवार पे फिर से हवा आ गयी। हालांकि किसान क्रांति यात्रा को सरकार ने दिल्ली बॉर्डर पर ही रोक दिया जिसमे किसानो और पुलिस के बिच काफी झड़प हुई। पुलिस ने किसानो पर पानी की बौछार और लाठी चार्ज भी किया जिसमे कई किसान घायल भी हुए। चौधरी नरेश टिकैत किसानों को लेकर उत्तरप्रदेश और दिल्ली बॉर्डर पर ही बैठ गए। जिसके बाद दिल्ली का गाज़ीपुर बॉर्डर किसान क्रांति गेट बन गया। बाद में भारत सरकार के एक प्रतिनिधी मंडल और किसानों की बीच में वार्ता हुई जिसमे किसानो की आधी माँगो को मान लिया। जिसके बाद धरना समाप्त हुआ।
चौधरी राकेश टिकैत ने दिलाई सबसे बड़ी जीत ,
तीन कृषि कानूनों के विरोध में देश में सबसे बड़ा आंदोलन हुआ जो 358 दिन तक चला जिसमें 700 किसान शहीद भी हुए । इस आंदोलन की शुरुआत हुई तो हरयाणा पंजाब के किसानो से थी। मगर बाद में ये आंदोलन पुरे देश का आंदोलन बन गया और पुरे देश से किसान संघठनो ने इस आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने 26 नवंबर 2020 को किसानो के साथ दिल्ली गाज़ीपुर बॉर्डर का कूच किया। इसके बाद किसान आंदोलन को लेकर सबसे जयादा बयानबाज़ी सरकार के खिलाफ करते रहे और सबसे ज्यादा मीडिया कवरेज ली। दरअसल शुरुआत में आंदोलन पर हरयाणा और पंजाब के किसान संघठनो का दबदबा ज्यादा था। धीरे धीरे राकेश टिकैत ने आंदोलन में अपनी जगह बनाई। और 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रेक्टर मार्च निकालने का एलान कर दिया। 26 जनवरी को ट्रेक्टर परेड में लालक़िले पर हुए उपद्रव वा तिरंगे के अपमान के बाद पुरे देश में किसान आंदोलन पर ऊँगली उठने लगी। जिसका महीनो से चल रहे किसान आंदोलन पर काफी प्रभाव पड़ा और राकेश टिकैत की छवि पर भी।
28 जनवरी को शाम के समय सिसोली में नरेश टिकैत ने आपात पंचायत बुलाकर आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। इसके कुछ देर बाद ही पुलिस ने जबरदस्ती किसानों को आंदोलन स्थल से भगाना शुरू कर दिया किसानों पर अत्याचार राकेश टिकैत से बर्दाश्त न हुआ और मीडिया के सामने राकेश टिकैत के आंसू छलक पड़े। उधर राकेश टिकैत के आँसू छलकने थे की पुरे देश के किसानों की अंतर आत्मा जाग गयी और रात में किसान गाज़ीपुर बॉर्डर पर पहुँचने शुरू हो गए किसानो का हजूम आता देख सरकार के भी हाथ पैर फूल गए और बॉर्डर से सारी फोर्स वापस बुला ली। उसी रात सिसोली में दोबारा पंचायत बुलाई गई और राकेश टिकैत के आंसुओ के विरोध में 29 जनवरी को मुज़फ्फरनगर में एक आपात महापंचायत बुलाने का एलान हो गया। चंद घंटो में ही मुज़फ्फरनगर में लाखों किसान इकट्ठा हो गए । जिसे देखकर सरकार को टिकैत परिवार की असली ताकत का अंदाज़ा हो गया।
इस घटना के बाद राकेश टिकैत आंदोलन का मुख्य चेहरा बन गए और आंदोलन ने फिर से गति पकड़ ली। तमाम तरह के लांछन और प्रोपेगण्डे को झेलते हुए राकेश टिकैत आंदोलन में खड़े रहे और किसानो की आवाज़ को उठाते रहे। अंत में सरकार को किसानो के सामने झुकना पड़ा और , 19 नवंबर को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए तीन कृषि काननों को रद करने का फैसला किया। जिससे किसनो की बड़ी जीत हुई। इस आंदोलन की जीत के बाद राकेश टिकैत देश में एक सेलेब्रेटी के रूप में जानें जाने लगे।
28 जनवरी को शाम के समय सिसोली में नरेश टिकैत ने आपात पंचायत बुलाकर आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। इसके कुछ देर बाद ही पुलिस ने जबरदस्ती किसानों को आंदोलन स्थल से भगाना शुरू कर दिया किसानों पर अत्याचार राकेश टिकैत से बर्दाश्त न हुआ और मीडिया के सामने राकेश टिकैत के आंसू छलक पड़े। उधर राकेश टिकैत के आँसू छलकने थे की पुरे देश के किसानों की अंतर आत्मा जाग गयी और रात में किसान गाज़ीपुर बॉर्डर पर पहुँचने शुरू हो गए किसानो का हजूम आता देख सरकार के भी हाथ पैर फूल गए और बॉर्डर से सारी फोर्स वापस बुला ली। उसी रात सिसोली में दोबारा पंचायत बुलाई गई और राकेश टिकैत के आंसुओ के विरोध में 29 जनवरी को मुज़फ्फरनगर में एक आपात महापंचायत बुलाने का एलान हो गया। चंद घंटो में ही मुज़फ्फरनगर में लाखों किसान इकट्ठा हो गए । जिसे देखकर सरकार को टिकैत परिवार की असली ताकत का अंदाज़ा हो गया।
इस घटना के बाद राकेश टिकैत आंदोलन का मुख्य चेहरा बन गए और आंदोलन ने फिर से गति पकड़ ली। तमाम तरह के लांछन और प्रोपेगण्डे को झेलते हुए राकेश टिकैत आंदोलन में खड़े रहे और किसानो की आवाज़ को उठाते रहे। अंत में सरकार को किसानो के सामने झुकना पड़ा और , 19 नवंबर को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए तीन कृषि काननों को रद करने का फैसला किया। जिससे किसनो की बड़ी जीत हुई। इस आंदोलन की जीत के बाद राकेश टिकैत देश में एक सेलेब्रेटी के रूप में जानें जाने लगे।
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