22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने हमारे देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया। जिनकी निंदा हर उस इंसान ने की जो एक इंसानी दिल रखता है और जिसमें संवेदनाएँ बाकी हैं।
पहलगाम हमले के बाद की तस्वीर |
जब ज़ख्म गहरा होता है तो स्वाभाविक है दर्द, जज्बात और ग़ुस्सा बहुत ज़्यादा होता है। ऐसे में व्यक्ति शांति से सोचने-समझने की क्षमता कुछ समय के लिए खो देता है। यह सबसे आम मानवीय प्रवृत्ति है।
जिन्होंने अपनों को खोया है उनके लिए तो ये ज़ख्म पूरी ज़िंदगी के लिए है, जो कभी नहीं भरा जा सकता — लेकिन एक नागरिक के तौर पर अब यह सवाल पूछना चाहिए कि हमला हमारे देश पर किसने किया, क्यों किया और किसको इसका फायदा हुआ।
पिछले दो सालों में जम्मू कश्मीर में टूरिज़्म पर्यटन की संख्या 22 लाख से बढ़कर 25 लाख हुई और सिर्फ पिछले साल 2.5 करोड़ तक पहुँच गई थी। इसका मतलब है कि जम्मू टूरिज्म एक दम बढ़ता साम्राज्य बन गया था। एक ऐसा राज्य जिसका मुख्य उद्योग पर्यटन हो, उसके पर्यटन में 10 गुना बढ़ोतरी कितनी मायने रखती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
जो इलाका आम तौर पर मई-जून में आबाद होता था, वह इस साल अप्रैल में ही पर्यटकों से भरने लगा था। टूरिज्म बढ़ने से स्थानीय लोगों में खुशी और आमदनी दोनों बढ़ रही थी। युवाओं को रोजगार मिलने लगा और चारों ओर खुशहाली दिखाई देने लगी थी।
हाल ही में कुछ वर्षों से रिपोर्ट्स आ रही थीं कि कश्मीर के खाली इलाकों के बेरोज़गार युवकों को पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा सीमा पार कराना और हथियार देना आसान हो गया था। लेकिन अब जब युवाओं को पर्यटन से काम मिलने लगा था, तब उनकी आतंकवादियों पर निर्भरता खत्म हो रही थी। होटल में काम करने वाले, टैक्सी ड्राइवर, शिल्पकार — सभी अच्छा खासा कमा रहे थे।
हमला इतना ध्वस्तकारी और सुनियोजित था कि हमलावरों ने एक तीर से कई निशाने साधे:
- पर्यटन पर सीधा असर
- निवेशकों का डर
- स्थानीय नौजवानों का भरोसा तोड़ना
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