फेक न्यूज़ का इंसानी दिमाग़ पर मनोवैज्ञानिक असर – जानिए कैसे झूठी खबरें हमारी सोच को बदल देती हैं"

फेक न्यूज़ का इंसानी दिमाग़ पर मनोवैज्ञानिक असर।

क्या आपने कभी ऐसी खबर देखी है जिसको देख कर या सुनकर आपको डर लगने लगा हो एक असुरक्षा का भाव उत्पन्न होने लगा हो, आपको लगने लगा हो के मैं या मेरा परिवार या मेरा धर्म सुरक्षित नहीं है , गुस्से में ला दिया हो या किसी पूरी तरह से झूटी खबर पर यकीन आगया हो?
अगर हां, तो हो सकता है आप भी फेक न्यूज़ के मनोवैज्ञानिक असर के शिकार बन चुके हों।
फेक न्यूज़ आज सिर्फ सोशल मीडिया की समस्या नहीं है — यह हमारी सोच, भावनाओं और व्यवहार को अंदर से प्रभावित कर रही है।

फेक न्यूज़ का इंसानी दिमाग़ पर मनोवैज्ञानिक असर 


फेक न्यूज़ क्या होती है?

फेक न्यूज़ यानी जानबूझकर फैलाई गई झूठी या भ्रामक जानकारी।
इसका मकसद होता है किसी व्यक्ति, समुदाय या देश को नुक़सान पहुंचाना – भावनाओं को भड़काकर।

फेक न्यूज़ जानबूझकर गलत जानकारी (misinformation) या दुष्प्रचार (disinformation) फैलाती है। इसका उद्देश्य समाज में भ्रम और संघर्ष उत्पन्न करना होता है। इसमें पुरानी तस्वीरों या वीडियो का इस्तेमाल करके उन्हें हाल की घटना के रूप में पेश करना शामिल हो सकता है।

साजिश के सिद्धांतों का प्रचार: फेक न्यूज़ अक्सर साजिश के सिद्धांतों को बढ़ावा देती है, जिससे लोगों में सरकार, मीडिया या अन्य संस्थानों के प्रति अविश्वास पैदा होता है। यह लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश चल रही है, जिससे वे भावनात्मक रूप से असुरक्षित महसूस करते हैं और प्रतिक्रिया देने के लिए उकसाए जाते हैं।

जैसे: "XYZ धर्म के लोग देशद्रोही हैं" या "किसी विशेष धर्म के लोग कोरोना फैला रहे है,यह फल खाने से कोरोना खत्म हो जाता है" — ये सभी फेक न्यूज़ के उदाहरण हैं।

इंसानी दिमाग़ पर फेक न्यूज़ का असर (Psychological Impact of Fake News) पुष्टिकरण पूर्वाग्रह (Confirmation Bias)

हम अक्सर उन्हीं बातों को सच मानते हैं जो हमारे पहले से बने विचारों से मेल खाती हैं या हमे कुछ पल की संतुष्टि देती हों,या जैसे आपने कोई एग्जाम दिया है तो उसके रिजल्ट आने तक आपका मन सिर्फ ये ही सुनना चाहता है के मै पास हो गया हूँ,आपका किसी से युद्ध चल रहा है तो आप सिर्फ अपनी जीत ही सुनिश्चित करना चाहते हो आपको केवल वो ही खबर प्रभावित करेगी जिसमे आपकी जीत बताई जा रही।
फेक न्यूज़ इस कमजोरी का फायदा उठाती है।
अगर किसी को लगता है कि एक राजनीतिक पार्टी भ्रष्ट है, तो वो उसी के ख़िलाफ़ झूठी खबरों पर आसानी से यकीन कर लेता है।

डर और घबराहट (Fear & Anxiety)

झूठी खबरें सनसनीखेज होती हैं — और हमारा दिमाग़ खतरे की खबरों को ज़्यादा तेजी से पकड़ता है।
एक खबर कभी भी चलने लगती है आज आसमान से उल्कापिण्ड गिरेंगे, या आसमान से होगी आग की बारिश। 
बहुत सी उलझी हुई खबरें देखकर दिमाग़ कन्फ्यूज हो जाता है और हम सही-गलत नहीं पहचान पाते।
सोशल मीडिया पर जब एक ही लीडर या पार्टी को लेकर सैकड़ों उलटी-पुलटी खबरें आती हैं, तो दिमाग़ सुन्न हो जाता है।
COVID-19 के दौरान नींबू, लहसुन, गोमूत्र जैसे घरेलू उपायों को इलाज बताकर गुमराह किया गया।

भावनात्मक नियंत्रण (Emotional Hijack)

फेक न्यूज़ कभी हमारे डर को बढ़ाकर, कभी ग़ुस्सा दिलाकर, तो कभी झूठी उम्मीदें देकर हमारी सोच को कंट्रोल करने की कोशिश करती है।
फेक न्यूज़ इंसान के इमोशन्स से खेलती है – गुस्सा, नफरत, डर या उम्मीद से।

नीचे आपको हर इमोशन के साथ कुछ वास्तविक और आसान उदाहरण दिए जा रहे है, जिनसे ये बात और ज़्यादा साफ़ हो जाएगी:

  1. COVID वैक्सीन लेने से लोग मर रहे हैं!"– ये झूठी खबर कई लोगों ने मानी और वैक्सीन से दूर हो गए, जिससे जान का ख़तरा बढ़ा।
  2. रात में बच्चा चोरी करने वाली गैंग घूम रही है!"यह अफवाह कई गांवों-कस्बों में फैली और इसकी वजह से भीड़ ने कई निर्दोषों को पीट डाला।
  3. हाइवे पर एक ट्रक में गाय का मॉस जा रहा है!"भीड़ ने ट्रक ड्राइवर और उसके साथियो को पीट पीट कर मार डाला और बाद में वह मॉस बकरे का निकला।
  4. विशेष धर्म के लोग देश में जनसंख्या बढ़ाकर राज करना चाहते हैं!"यह अफ़वाह कई बार अलग-अलग रूपों में फैलती है और इसका मक़सद है धर्मों के बीच नफ़रत फैलाना।
  5. अप्रैल से सरकार हर बेरोज़गार को ₹5,000 देगी – फॉर्म भरें!" इस फेक न्यूज़ से लोग झूठी उम्मीद में अपने दस्तावेज़ और निजी जानकारी शेयर कर देते हैं।
  6. अगर आप ये मंत्र 7 बार शेयर करेंगे तो आपके सारे दुख खत्म हो जाएंगे!"ऐसे संदेश लोगों की भावनाओं और मजबूरी का फ़ायदा उठाते हैं। 
फेक न्यूज़ अक्सर "हम बनाम वो" का माहौल बनाती है -जिससे समाज में नफ़रत, दूरी और झगड़े बढ़ते हैं।
फेक न्यूज़ सिर्फ झूठी खबर नहीं होती यह दिमाग़ को कंट्रोल करने का एक मनोवैज्ञानिक हथियार बन चुकी है।
समझदारी, जानकारी और सतर्कता ही इसका इलाज है।
इसलिए अगली बार जब कोई खबर आपको भावनात्मक बना दे – तो पहले रुकें, सोचें और सत्यापन (Fact-checking) ज़रूर करें।

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