धर्म क्या है
धर्म इंसानों के द्वारा अपनाए जाने वाला बहुत ही महत्वपूर्ण विषय हैं।धर्म मनुष्य को उसकी आस्था और विश्वास के साथ जोड़े रखने का नाम है । हमारे प्राचीन धर्मगुरुओं पैगम्बरों देवताओ अवतारो ने समाज में इस धर्म रूपी व्यवस्था को इसलिए लागू व प्रचलित किया ताकि मानव जाति के दिलों में एक दूसरे के प्रति प्रेम, भाईचारा, सहयोग, एक दूसरे के दु:ख तकलींफों को समझना, दीन दुखियों की मदद करना, गरीबों, असहायों, बीमारों आदिके प्रति सहयोग व सहायता करना जैसे तमाम सकारात्मक भाव उत्पन्न हों। इसी धर्म को आधार बनाकर हमारे पूर्वजों तथा धर्मगुरुओं ने हमें बुरे कामों के बदले पाप तथा नर्क के भागीदार बनने जैसी बातों से भी अवगत कराया। आज लगभग प्रत्येक धर्म में यह बात स्वीकार की जाती है कि मनुष्य द्वारा जीवन में किए गए अच्छे कार्यों का फल उसके मरने के बाद स्वर्ग के रूप में प्राप्त होता है। जबकि दुष्कर्मकरने वाला व्यक्ति पाप का भागीदार होता है तथा वह मरने के बाद नर्क में जाता है।सभी धर्मों की व्यवस्था से एक बात जरूर सांफ हो जाती है कि इंसान के पूर्वजों ने धर्म नामक व्यवस्था का संचालन मात्र इसीलिए किया था ताकि इंसान सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए अपने जीवन में अच्छे कार्यों को करे तथा अच्छी बातों का अपनाए। और साथ ही साथ बुरे रास्तों व बुराईयों से दूर रहे।
धर्म अब भय,आतंक तथा हिंसा का पर्याय बनता जा रहा है। धर्म को इस स्थिति तक पहुंचाने वाले लोग आख़िर हैं कौन
धर्म नामक व्यवस्था विवादों में उस समय से घिरना शुरु हुई जबसे राजनीति के साथ धर्म का तालमेल बिठाने के दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास शुरुहुए। धर्म के साथ राजनीति का रिश्ता कायम करना उचित व कारगर नहीं है। हमारे देश में मतों की राजनीति करने तथा सीमित सोच रखने वाले पूर्वाग्रही एवं कट्टरपंथी नेता राजनीति पर तथाकथित धर्म का लेपचढ़ाकर इसे प्रदूषित व अपवित्र करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। यदि एक तानाशाह आक्रांत शासक ने कल सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करने जैसी बड़ी हिमाक़त की थी तो आज की लोकतांत्रिकव्यवस्था में विवादित बाबरी मस्जिद को गिराकर उसी हिमाक़त का बदला लेने का उसी अंदांज में प्रयास किया जाता है। जब यही व्यवस्था मानव जाति में नंफरत पैदा करे, एक भाई को दूसरे भाई के खून का प्यासा बना दे, एक समुदाय दूसरे समुदाय काबेवजह दुश्मन बन जाए ऐसे में यही धर्म, आस्था तथा विश्वास का प्रतीक नजर आने के बजाए नंफरत तथा भय का पर्याय बनता नंजरआता है। हम आज जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में सांस ले रहे हैं उसमें धार्मिक कट्टरपंथ, धार्मिक पूर्वाग्रह तथा अपने धार्मिक राजनैतिकविचार आदि जबरन किसी पर थोपने की कोई गुंजाईश नहीं है। राजनीतिज्ञों के ऐसे प्रयासों के परिणामस्वरूप सत्ता प्राप्ति की उनकी स्वार्थपूर्ण इच्छा तो भले ही कुछ समय के लिए पूरी हो जाती है।परंतु मानवता उन सत्ताधीशों को कतई मांफ करने को तैयार नहीं होती जिनके सत्ता के सिंहासन की बुनियाद बेगुनाह लोगों के ख़ून सेसनी होती है।कैसे इन बिगड़ते हुए हालातों को ठीक किया जा सकता है
लोकतांत्रिक व्यवस्था में चूंकि आम मतदाता ही सबसे बड़ी शक्ति है लिहाजा प्रत्येक स्तर पर यह कोशिश की जानी चाहिए कि हमारा मतदाता जागरुक हो अपनी आंखें खोले तथा किसी भी राजनैतिक हथकंडे का शिकार होने से बच सके। धर्म के नाम के दुरुपयोग से स्थायी रूप से समाज को बचाने के लिए अनिवार्य बेसिक शिक्षा के स्तर पर भी यह प्रयास अत्यंत जरूरी हैं। इसके अंर्तगत् देश का भविष्य बनने वाले बच्चों को सर्वधर्म समभाव,सांप्रदायिक सौहाद्र,अनेकता में एकता, सर्वे भवंतु सुखिन: तथा वसुधैव कुटुंबकम जैसी प्राचीन एवं पारंपरिक भारतीय शिक्षा एवं मानवता को सकारात्मक संदेश देने वाले इतिहास तथा घटनाक्रमों का अध्ययन कराया जानाअत्यंत जरूरी है।हमें निश्चित रूप से यह मान लेना चाहिए कि धर्म व राजनीति के मध्य रिश्ता स्थापित कर यदि कोई नेता अथवा धर्मगुरु हमसे किसी पार्टी विशेष के लिए वोट मांगता है तो ऐसा व्यक्ति अथवा संगठन हमारी धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करने की ही कोशिश मात्र कर रहा है। समाज कल्याण से दरअसल उस व्यक्ति या संगठन का कोई लेना देना नहीं है। धर्म वास्तव में किसी भी व्यक्ति की आस्थाओंतथा विश्वास से जुड़ी एक ऐसी आध्यात्मिक विषय वस्तु है जो किसी भी व्यक्ति को व्यक्ति गत रूप से ही संतोष प्रदान करती है। अत: हम यह कह सकते हैं कि धर्म किसी सामूहिक एजेंडे का नहीं बल्कि किसी की अति व्यक्तिगत् विषय वस्तु का नाम है। ठीक इसके विपरीत जो शक्तियां धर्म को अपने राजनैतिक स्वार्थ के कारण सड़कों पर लाना चाहती हैं वे शक्तियां भले ही धार्मिक वेशभूषा में लिपटीहुई तथा धर्म के नाम पर ढोंग व पाखंड रचाती क्यों न नंजर आएं परंतु हंकींकत में यही तांकतें हमारे मानव समाज, राष्ट्र यहां तक किकिसी भी धर्म की भी सबसे बड़ी दुश्मन हैं।
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