Iran Saudi Deal- ईरान और सऊदी को एक करने में चीन कामयाब होगा- क्या इस्लामिक देश कट्टरता को ख़तम कर करीब आ रहे है.

मध्यपूर्व के दो प्रतिद्वंद्वी देश ईरान और सऊदी अरब ने एक दूसरे की और दोस्ती का हाथ बढ़ाने का संकेत दिया है

7 साल पहले भारी विवाद के बाद दोनों ने अपने राजनयिक रिश्ते ख़तम कर लिए थे।



 

चीन में सऊदी अरब और ईरान के अधिकारियो के बीच 4 दिन की बातचीत के बाद कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने की अप्रतीयशित घोषणा हुई है।

घोषणा में कहाँ गया है के वे 2 महीनो के अंदर अपने दूतावासों को खोल देंगे और अपने व्यापारिक रिश्तो को दोबारा स्थापित करेंगे।

इस मामले में चीन की एंट्री बेहद दिलचस्प है. यह समझौता चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी की मध्यस्थता में हुआ है. इसे मध्य पूर्व में चीन की बढ़ती भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है.

जिस तरह की घटनाएं पहले हो चुकी हैं, उसके बाद दोनों एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते. लेकिन दोनों के बीच हालिया समझौते के बाद हम ये मान रहे हैं के वे इस क्षेत्र के वास्तविक राजनीतिक यथार्थ को समझते हैं.

दोनों को पता है कि वे एक ख़तरनाक क्षेत्र में रह रहे हैं और बेहतर यही है कि यहां अपनी भूमिका निभानी है तो उन्हें आपसी दुश्मनी को छोड़ना होगा.

 

क्यों और कब हुए थे दोनों देशो के बीच सम्बन्ध ख़राब 


साल 2016 में सऊदी सरकार के द्वारा एक शिया धर्मगुरु शेख़ निम्र को फांसी दिए जाने के विरोध में रियाद स्थित सऊदी दूतावास में ईरानी प्रदर्शनकारी घुस आये थे।

साल 2016 में इस घटना के बाद सऊदी अरब ने ईरान से अपने रिश्ते खतम कर दिए थे।


सऊदी अरब लगातार ये आरोप लगाता रहा है कि हूती विद्रोही ईरान की मदद से उस पर हमले कर रहे हैं.

सऊदी अरब जिन हमलों की बात करता रहा है उसमें सबसे गंभीर था 2019 में उसके बड़े तेल संयंत्रों पर ड्रोन और मिसाइलों से किया गया वार. इस हमले में इन तेल संयंत्रों को भारी नुक़सान हुआ था और इससे सऊदी का उत्पादन बाधित हो गया था.

सऊदी अरब ने इस हमले के लिए ईरान को ज़िम्मेदार ठहराया था लेकिन ईरान का कहना था कि इसमें उसका कोई हाथ नहीं है.

पिछले सात साल के दौरान ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौते की कई कोशिशें हो चुकी हैं. लेकिन पिछले शुक्रवार को दोनों देशों का बयान काफी अहम है.

क्या इस्लामिक देश आपसी दुश्मनी और कट्टरता को ख़तम कर एक दूसरे के करीब आ रहे है.

अमेरिका पर निर्भर देश जिनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अमेरिका ने ली हुई है उनको इस क्षेत्र से अमेरिकी सैनिकों की वापसी इस क्षेत्र में अमेरिका की घटती दिलचस्पी महसूस हो रही है। 

इस क्षेत्र के कुछ दूसरे देशों को लगता है कि वे अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए अकेले अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकते.

अरब देशों ने ये भी देखा कि रूस ने सीरिया की असद सरकार का किस तरह साथ दिया, जबकि उनके ख़िलाफ़ मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर मामले थे.

तो अब अरब देशों को लग रहा है कि वह अपनी सुरक्षा ज़रूरतों के लिए अमेरिका पर और ज़्यादा विश्वास नहीं कर सकते।

पिछले कुछ सालों का ट्रेंड देखें तो ऐसा लग रहा है कि पश्चिम एशिया के इस्लामिक देश आपसी मतभेद भुला रहे हैं.

साल 2021 में सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और मिस्र ने क़तर के ख़िलाफ़ नाकेबंदी ख़त्म कर दी थी.

सऊदी अरब और ईरान के बीच भी इराक़ में कई चरणों की बातचीत हो चुकी है. यमन को लेकर भी सऊदी अरब का रुख़ बदल रहा है.

तुर्की और यूएई भी आपसी मतभेद भुला चुके हैं और दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय दौरा भी हुआ.

सऊदी अरब से भी तुर्की ने आपसी मतभेद को किनारे रख दिया और राष्ट्रपति अर्दोआन ने अप्रैल में सऊदी का दौरा किया.


हाल ही में सऊदी अरब ने घोषणा की है कि तुर्की के केंद्रीय बैंक में पाँच अरब डॉलर जमा करेगा. भूकंप से तबाह तुर्की के लिए सऊदी अरब ने अपना ख़ज़ाना खोल दिया है.


ऐसा तब हो रहा है, जब तुर्की के संबंध पश्चिम से ठीक नहीं है, सऊदी अरब का रिश्ता भी अमेरिका से तनाव भरा है और यूएई भी पश्चिम की हर बात नहीं मान रहा है. ईरान और अमेरिका की दुश्मनी तो जग ज़ाहिर है.

अब देखना ये है कि कागज़ पर हुआ ये समझौता ज़मीनी स्तर पर कितना उतर पाता है.

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