इंसान की मौत हो जाने के बाद उसकी बॉडी को जलाया या दफनाया जाता है या फिर पारसी लोग बॉडी को एक किसी शहर से दूर ऊँची जगह रख आते है जिसको गिद्ध खा लेते है बस ये दो तीन तरह की बाते देखी या सुनी होगी जो मरने के बाद इंसान की बॉडी के साथ किया जाता है।
लेकिन अब बदलते ज़माने के साथ लोगो ने इन तरीको को भी बदलना शुरू कर दिया है सोच कर अजीब लगेगा आपको ये शुरुवात हुई है अमेरिका से जहाँ पर मानव शरीर से उपजाऊ मिट्टी बनाने के तरीके की नई खोज हुई है।
इस प्रक्रिया को (Human Composting) नेचुरल कार्बनिक रिडक्शन" के रूप में भी जाना जाता है इसमें किसी बॉडी को एक कंटेनर में बंद कर दिया जाता जो कुछ दिनों बाद खाद में तब्दील हो जाती है.और फिर उस खाद को मर्तक के परिवारजनों को दे दिया जाता है और वे उस खाद का इस्तेमाल अपने घर में रखे गमलो में किचन गार्डन में फूल और सब्ज़ियों के उगाने में करते है।
चलिए अब बात करते है इस प्रक्रिया की शुरुवात कहाँ से और कैसे हुई।
कैसे इंसान की बॉडी से बनता है खाद?
यह प्रक्रिया जमीन के ऊपर बने स्पेशल फैसिलिटी में पूरी होती है. इसके अंतर्गत किसी मरे इंसान के शरीर को लकड़ी के छोटे टुकड़ो, अल्फाल्फा और पुआल जैसी खास चुनी हुई चीजों के साथ एक बंद बक्से में रखा जाता है. ऐसी स्थिति में वह बॉडी धीरे-धीरे मिक्रोब्सकी मदद से विघटित होती है.
इस तरीके में मानव शव को 'नेचुरल ऑरगेनिक रिडक्शन' (Natural organic reduction) की प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है.इससे शव के सॉफ़्ट टिश्यू (Soft tissues) यानी नरम ऊतक, खाद जैसे पदार्थ में बदल जाते हैं.
बीच बीच में गर्मी भी दी जाती है. लगभग एक महीने की अवधि के बाद मृत इंसान की बॉडी खाद या पोषकयुक्त मिट्टी में बदल जाती है. इसका उपयोग फूल, सब्जियां या पेड़ लगाने में किया जा सकता है.
फायदे भी जान लो इसके
इस पहल के समर्थकों का कहना है कि यह न केवल पर्यावरणीय रूप से अच्छा विकल्प है, बल्कि उन शहरों में भी अधिक व्यावहारिक है जहां कब्रिस्तानों के लिए भूमि सीमित है.
मानव शव से उपजाऊ मिट्टी बनाने के इस तरीके को सुरक्षित माना जाता है. जानकारों का कहना है कि इस तरह की प्रोसेसिंग मेंअधिकांश पैथोजन्स (pathogens) यानी रोगजनक नष्ट हो जाते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में लगभग 10 लाख एकड़ यानी 404,685 हेक्टेयर ज़मीन श्मशान घाट (Burial) के लिए सुरक्षितहै. यानी इस ज़मीन पर न तो पेड़ पौधे और जंगल उगाए जा सकते हैं, बल्कि इस पर वन्य जीवों को भी नहीं रखा जा सकता. इसकेअलावा हर साल करीब 40 लाख एकड़ जंगल, ताबूत और शव को रखने वाले संदूक (coffins and caskets) बनाने में नष्ट हो जाताहै.
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