बुढ़ाना (मुज़फ्फरनगर) का संक्षिप्त इतिहास, बेगम समरू, बुद्धा त्यागी, राव दीवान सिंह जी का बुढ़ाना से सम्बन्ध

बुढ़ाना कई बार बर्बाद हो चुका है। लेकिन इसे अंतिम बार श्री बुद्धा त्यागी जी ने बसाया था जिनके नाम पर इसका वर्तमान नाम बुढ़ाना पड़ा। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की बात करें तो सम्राट अकबर की 'आईन-ए-अकबरी' में बुढ़ाना का उल्लेख एक परगना के रूप में किया गया है, जो सहारनपुर सरकार के अधीन आता था। मुगल काल में परगना और सरकार क्षेत्र के विभाजन की इकाइयाँ हुआ करती थीं। बादशाह शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में बुढ़ाना निवासी हरकरण सिंह त्यागी जी उनके वजीर-ए-आजम हुआ करते थे।



इसके बाद बुढ़ाना में बेगम समरू की बारी आई।

बेगम समरू बागपत जिले के कोताना कस्बा निवासी फरजाना थीं। भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के फ्रांसीसी सिपहसालार वाल्टर उर्फ समरू ने फरजाना से शादी की थी, जिसे दिल्ली के शासक शाह आलम द्वितीय ने एक लड़ाई के इनाम स्वरूप सरधना की रियासत दे दी, लेकिन वर्ष 1778 में समरू की मौत के बाद फरजाना को बेगम समरू के नाम से जाना गया। हरिद्वार से लेकर गढ़मुक्तेश्वर तक फैली इस रियासत का मुख्यालय यही किला था। बाद में बेगम समरू ने कैथोलिक धर्म अपना लिया और सरधना में चर्च का निर्माण कराया।





वर्ष 1837 में बेगम समरू की मौत के बाद इस रियासत व किले पर ब्रिटिश सरकार का अधिकार हो गया। वर्ष 1901 में पुलिस थाना व चौकी बनाई गई। जो वर्ष 1982 में नए परिसर में स्थानांतरित होने तक यहीं चली। इसलिए इसे पुरानी तहसील भी कहा जाता है।




बुढ़ाना निवासी राव दीवान सिंह जी का संबंध बेगम समरू की जागीर से था। वह बेगम समरू के वजीर-ए-आजम यानी उनके प्रधानमंत्री हुआ करते थे और एकमात्र व्यक्ति थे जिनकी बातें बेगम कभी नहीं टालती थीं। सरधना चर्च में मौजूद बेगम समरू की मूर्ति के पास हाथ में किताब लिए मौजूद मूर्ति राव दीवान सिंह जी की ही है।



बुढ़ाना में भी एक किला हुआ करता था. हालाँकि, आज इसका केवल एक हिस्सा ही बचा है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह किला बेगम समरू से पहले से ही यहां स्थित था। यह बेगम समरू के किले के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यही किला बाद में तहसील और पुलिस थाने की इमारत भी बना।

आज किले के एक हिस्से में गर्ल्स इंटरकॉलेज चल रहा है।

वहीं दूसरी ओर कुछ पुराने कमरे भी हैं जो हमें पुराने समय का सबूत देते हैं। फिलहाल यह वीरान है। हालाँकि ऐसा माना जाता है कि ये जेलें थीं।



बुढ़ाना: यहां कई पुरानी मस्जिदें और मंदिर मिल जाएंगे जो यहां की साझी विरासत का सबूत हैं. श्री छत्री के नाम पर एक मंदिर भी है जहां राव दीवान सिंह जी के पद्म प्रतीकों की छवि मौजूद है।



त्यागी परिवार ने अपने इतिहास को बखूबी संजोकर रखा है। हमारे पूर्वजों की इमारतों से लेकर हमारी वंशावली तक हम यहां सुरक्षित हैं। कुल मिलाकर बुढ़ाना गांव अपने आप में एक अनोखा इतिहास ग्रंथ प्रतीत होता है।  

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